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लेखनी प्रतियोगिता -03-Apr-2024" बिख़रे मोती "

           "बिख़रे मोती"

सीप को जब, गहरे समंदर से निकाला गया। 
तब टूट कर सिसकियों में तब्दील हो कर रह गई।। 


सोचा नहीं था उसने, अलग हो कर ये सागर से कभी। 
चुरा ले जाएगा बेरहम ज़माना,मेरे अंदर से मिरा गौहर कहीं।। 


हो गया ख़तम वज़ूद मोती बग़ैर सीप का। 
खेल कोई खेल गया,नादां समझ ज़माने का नामुंदा कोई।। 


है कौन गुनेहगार उसके इस हाल-ए-बेक़रार का। 
हैं पूछती ख़ामोशी पड़ी, लिपटी सागर किनारे सीप कोई।। 


हूँ जिंदा या कि मुर्दा, ना करे सवाल मुझसे अब यहाँ कोई। 
ना रह गया सरोकार अब, किसी के एतवार-ए-वफ़ा पर कोई।। 

मधु गुप्ता "अपराजिता"

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4 Comments

Mohammed urooj khan

16-Apr-2024 12:39 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Reyaan

11-Apr-2024 05:54 PM

Nice

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Shnaya

11-Apr-2024 05:02 PM

V nice

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